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कविता

बदलो!

महेन्द्र भटनागर


सड़ती लाशों की
दुर्गंध लिए
छूने
गाँवों-नगरों के
ओर-छोर
             जो हवा चली -
             उसका रुख बदलो!
जहरीली गैसों से
अलकोहल से
लदी-लदी
गाँवों-नगरों के
नभ-मंडल पर
            जो हवा चली
            उससे सँभलो!
            उसका रुख बदलो!


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